भगवत गीता जयंती | मोक्षदा एकादशी

NiosBooks December 3, 2022 No Comments

भगवत गीता जयंती | मोक्षदा एकादशी

भगवत गीता जयंती | मोक्षदा एकादशी

गीता जयंती क्यों मनाया जाता है?

संसार में किसी भी धर्म-संप्रदाय के ग्रंथ मनुष्यों ने लिखे या संकलित किए हैं, लेकिन गीता ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसका जन्म स्वयं भगवान कृष्ण के मुंह से हुआ है. यही वजह है कि सिर्फ श्रीमद्भागवत गीता ही ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है. गीता के 18 अध्यायों में जीवन का सत्य, ज्ञान और गंभीर सात्विक उपदेश दिए हैं जो मनुष्य के दुखों को दूर कर सुख का आभास कराते हैं.

हर माह की एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. मान्यता है कि मार्गशीर्ष माह के मोक्षदा एकादशी पर व्रत, पूजा, मंत्र जाप और गीता का पाठ करने वालों को विकारों, पाप कर्मों से मुक्ति और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है. मोक्षदा एकादशी पर ही भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से गीता का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है.

गीता जयंती का महत्व

हिंदू धर्म में गीता ग्रंथ का विशेष महत्व होता है. यह सभी ग्रंथों में एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है. इसका कारण यह है कि लगभग अन्य सभी ग्रंथों को ऋषि मुनियों द्वारा लिखा गया है, लेकिन गीता ग्रंथ श्रीकृष्ण के उपदेश पर आधारित है. इसमें श्रीकृष्ण द्वारा जीवन और मृत्य के गूढ़ रहस्य के बारे में बताया है. साथ ही गीता ऐसा ग्रंथ है जिसके उपदेश में कई समस्या के हल छिपे हैं. जिस प्रकार श्रीकृष्ण के उपदेश से ही अर्जुन द्वारा महाभारत का युद्ध जीतना संभव हो सका, ठीक उसी तरह गीता ज्ञान से व्यक्ति भी कठिन परिस्थितियों को हरा कर जीत हासिल कर सकता है.

गीता में श्री कृष्ण ने जीवन के कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। उनहोंने न केवल गीता के माध्यम से धर्म के विषय में बताया है बल्कि ज्ञान, बुद्धि, जीवन में सफलता इत्यादि के विषय में भी मनुष्य को अवगत कराया है।

कुछ सबसे प्रसिद्ध भागवत गीता श्लोक

  1. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

इस श्लोक का अर्थ है : हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

2. परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

3. यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

इस श्लोक का अर्थ है: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

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